महाराष्ट्र में पानी का हाहाकार, गांव-शहर सब बेहाल

महाराष्ट्र में गर्मी की शुरुआत के साथ ही जल संकट ने भयावह रूप ले लिया है. राज्य के ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी बहुमंजिला इमारतों तक, हर जगह पानी की एक-एक बूंद के लिए हाहाकार मचा हुआ है. वाशिम, पालघर, ठाणे, बुलढाणा जैसे जिलों के सैकड़ों गांवों में लोग आज भी साफ पानी के लिए कांटो भरे रास्तों से गुजर रहे हैं.
वाशिम जिले का खैरखेड़ा गांव, जो एक पहाड़ी पर बसा है, वहां की 3 हजार से अधिक आबादी में ज्यादातर आदिवासी और बंजारा समुदाय के लोग रहते हैं. यहां महिलाओं को पानी भरने के लिए रोज़ एक किलोमीटर दूर घाट रोड तक पैदल चलना पड़ता है. उबड़-खाबड़ रास्ते, कांटे, पत्थर और चिलचिलाती धूप ये सब इन महिलाओं के रोज़ाना के साथी बन चुके हैं.
पालघर: 75 घर, सिर्फ एक हैंडपंप
पालघर जिले की वाडा तहसील के नदीपाड़ा गांव की स्थिति भी चिंताजनक है. यहां 300 से 400 लोगों की आबादी के लिए सिर्फ एक हैंडपंप है वह भी कई बार सूखा ही रहता है. महिलाएं दिन में 5 से 6 बार 1-2 किलोमीटर दूर जाकर लाइन में खड़ी होती हैं, पर पानी न मिलने पर मायूस लौट जाती हैं. 20 साल से इस गांव की यही कहानी है संघर्ष, इंतजार और निराशा.
मोखाडा का बेरिस्ते गांव: एक कुआं, 700 लोग
मोखाडा तहसील के बेरिस्ते गांव में 150 घर हैं, और पूरे गांव की प्यास बुझाने के लिए सिर्फ एक पुराना कुआं बचा है. कुएं का पानी गंदा है, लेकिन यही एकमात्र विकल्प है. महिलाएं और स्कूली बच्चियां कई किलोमीटर दूर से इसी पानी को छानकर घर लाती हैं. यहां दो दिन में एक बार एक टैंकर आता है, जो कुछ ही लोगों को नसीब होता है.
स्थानीय निवासी ने बताया, “प्रधानमंत्री की जल जीवन योजना सिर्फ कागजों पर है. ठेकेदारों का पैसा अटका हुआ है और हम आज भी गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.”
ठाणे का शाहपुर तालुका: पहाड़ों के बीच से पानी की खोज
शाहपुर तालुका के कोलभौंडे और कोथले जैसे गांवों में महिलाएं 2 से 3 किलोमीटर पहाड़ी रास्तों से होकर पानी लेने जाती हैं. सरपंच जया वाख कहती हैं, “प्रेग्नेंट महिलाएं तक दिन में 6-7 बार पानी लेने आती हैं. चार-पांच घंटे सिर्फ पानी ढोने में चले जाते हैं.”
65 साल की एक बुजुर्ग महिला कहती हैं, “10 साल से पानी भरने के लिए पहाड़ चढ़ रही हूं. अब शरीर जवाब दे रहा है, लेकिन पानी नहीं मिलेगा तो कैसे जिएंगे?”
मुंबई में भी प्यासा ‘रेनफॉरेस्ट’
मुंबई जैसे महानगर की भी हालत कुछ कम नहीं. अंधेरी की कनकिया रेनफॉरेस्ट सोसाइटी में पिछले 5 दिनों से पानी की आपूर्ति बंद है. बीएमसी के आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू करने के बावजूद निजी टैंकर सेवा ठप्प है. करीब 600 परिवार बिना पानी के रह रहे हैं बाथरूम सूखे पड़े हैं, लोग स्नान नहीं कर पा रहे और रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
जल संकट की जड़ें और चुनौतियां
राज्य के कई जिलों में जल जीवन योजना की घोषणा जरूर हुई है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका असर नहीं दिखता. टैंकरों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है, और गर्मी के मौसम में यह आपूर्ति मांग से कहीं पीछे रह जाती है. महिलाओं और बच्चों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ रहा है- समय, श्रम और स्वास्थ्य की कीमत चुकानी पड़ रही है.
क्या अब भी चेतेंगे जिम्मेदार?
सवाल सिर्फ पानी का नहीं है, यह सवाल है एक सम्मानजनक जीवन का, जहां हर इंसान को शुद्ध जल तक पहुंच मिले. ये गांव हमें बार-बार याद दिला रहे हैं कि विकास की दौड़ में बुनियादी ज़रूरतें कहीं पीछे छूट रही हैं. अब वक्त आ गया है कि घोषणाएं नहीं, जमीन पर बदलाव दिखे.