शराब सिंडीकेट ने टेंडर का किया ‘अघोषित’ बहिष्कार
भोपाल । मप्र के वाणिज्य कर विभाग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए जबलपुर जिले के सहायक आबकारी आयुक्त रविंद्र मानिकपुरी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। निलंबन अवधि में इनका मुख्यालय कार्यालय आबकारी आयुक्त ग्वालियर रहेगा। जानकारों का कहना है कि शराब सिंडीकेट ने जिस तरह जबलपुर में अघोषित तौर पर टेंडर का बहिष्कार किया है उसका खामियाजा सहायक आबकारी आयुक्त को उठाना पड़ा है। हालांकि विभाग द्वारा सहायक आयुक्त पर सरकारी आदेशों की अव्हेलना करने का आरोप लगाया गया है। उप सचिव मप्र शासन वाणिज्यिक कर विभाग वंदना शर्मा भोपाल के द्वारा जारी किए गए निलंबन आदेश में उल्लेखित है कि रविन्द्र मानिकपुरी, सहायक आबकारी आयुक्त, जिला जबलपुर द्वारा शासकीय कार्यों के निर्वहन में लापरवाही बरत रहे थे और वरिष्ठ अधिकारियों से जारी आदेश की अवहेलना कर रहे थे। इसके साथ ही आदेश में यह भी उल्लेखित है कि जबलपुर जिले में वर्ष 2025-26 के लिए कम्पोजिट मदिरा दुकानों, एकल समूहों के निष्पादन हेतु जारी आबकारी नीति के क्रियान्वयन एवं निष्पादन की कार्यवाही के प्रति बरती जा रही लापरवाही से शासन के राजस्व पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए उपरोक्त अनियमितताएं गंभीर श्रेणी होकर मप्र सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 के नियम 3 का स्पष्ट उल्लंघन है और शासकीय कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही एवं अनुशासन हीनता के घोतक है।
गौरतलब है कि जबलपुर जिले की शराब दुकानों के लिए पहले चरण की ठेका प्रक्रिया में एक भी आवेदन नहीं आया। अब आबकारी विभाग को दूसरा चरण अपनाना पड़ रहा है। इसमें 29 ग्रुप बनाए गए हैं। असल बात यह सामने आ रही है कि आरक्षित मूल्य में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी ठेकेदार हजम नहीं कर पा रहे। इसलिए उन्होंने मूल्य कम कराने के लिए सिंडीकेट बना लिया है। नए वित्तीय वर्ष के लिए जिले की 143 दुकानों के लिए 939 करोड़ रुपए के राजस्व का लक्ष्य रखा गया है।
सिंडिकेट ने नहीं होने दिया ठेका
जानकारों का कहना है कि शराब ठेकेदारों का सिंडिकेट सरकार और प्रशासन पर भारी पड़ रहा है। जिसने शराब दुकानों का ठेका नहीं होने दिया। साठगांठ उजागर होने पर सरकार ने सहायक आबकारी आयुक्त (जिला आबकारी अधिकारी) रविंद्र मानिकपुरी को निलंबित कर दिया है। प्रभार सागर के सहायक आयुक्त दीपक अवस्थी को सौंपा गया है। दरअसल, यह सिंडिकेट जबलपुर में दो साल से काम कर रहा था। जिसने मिलीभगत से शराब की ओवर प्राइसिंग कर करोड़ों रुपए कमाए थे। इसका खुलासा होने पर ईओडब्ल्यू ने छापे की कार्रवाई कर अधिक दाम वसूलने पर चार शराब ठेकेदारों के खिलाफ धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। लेकिन आबकारी विभाग इस पर चुप्पी साधे रहा। शिकायतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की। इसी साठगांठ के चलते शराब ठेकेदारों ने मिलीभगत कर 9 मार्च को पहली नीलामी में शराब दुकानों का ठेका नहीं होने दिया। जिले में 143 कम्पोजिट शराब दुकानों में से एक के लिए भी टेंडर नहीं डाले गए। इस झटके के बाद सरकार ने रिपोर्ट ली तो पता चला कि इस साठगांठ में आबकारी विभाग का अमला भी शामिल है। लिहाजा कार्रवाई की शुरुआत जिला आबकारी अधिकारी मानिकपुरी से शुरु की गई। जिन्हें निलंबित कर आबकारी आयुक्त कार्यालय ग्वालियर अटैच किया है।
मनमर्जी से शराब दुकान चलाने का आरोप
दो साल तक मनमर्जी से शराब दुकान चलाते हुए एमआरपी से भी ऊंचे दाम पर शराब का कारोबार करने वाले ठेकेदारों ने ईओडब्ल्यू की कार्रवाई के बाद भी अपनी हरकतें नहीं रोकी थी। बल्कि उल्टे शहर के साथ पूरे जिले के ठेकेदारों को सिंडिकेट में शामिल कर करोड़ों रुपए अतिरिक्त ग्राहकों से वसूले गए थे। लेकिन आबकारी विभाग ने किसी भी ठेकेदार पर कोई कार्रवाई नहीं की थी। इसका हश्र यह हुआ कि ठेकेदार अपनी शर्त पर ठेके लेने के लिए एक राय से ठेकों का अघोषित बहिष्कार कर रखा है। ताकि मजबूर होकर कम दर पर ठेके उन्हें आवंटित कर दिए जाएं। हाल ही में कुछ जगह ऐसे मामले सामने आए थे, जहां ऊंचे दाम पर शराब बेची जा रही है। ग्राहकों ने इसकी शिकायत भी की लेकिन मिलीभगत के चलते कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। अब दूसरी बार विभाग ने टेंडर के लिए नीलामी प्रक्रिया को अपनाया है। इसकी आखिरी तिथि भी 13 मार्च है।